प्रश्न : नमस्कार भ्राता श्री, एक सज्जन ब्राह्मणों की उत्पति और प्रथम पूर्वज के विषय में जानना चाहते हैं। उचित जानकारी इसी इनबॉक्स में भेंजे
उत्तर : आज से १,९७,२९,४९,११८ वर्ष पहले जिस समय संसार की उत्पत्ति हुई तो आज से १,९६,०८,५३,११८ वर्ष पहले परमात्मा ने एक साथ अनेक मानव व दानवों को जन्म दिलाया। पहले मानव ऋषि थे अतः वर्ण व्यवस्था न थी। पश्चात दानव लोग मानवों से अधिक होने लगे तो तथा वे अहिंसक मानवों को हिंसा के द्वारा बहुत परेशान करने लगे तो राक्षसों से रक्षा के लिए राष्ट्र का निर्माण किया गया और इस कार्य को महर्षि मनु महाराज ने किया और वर्ण व्यवस्था की गई, राष्ट्र की रक्षा हेतु। अतः मनु महाराज ही ब्राह्मण व्यवस्था के जनक माने जाते हैं। आर्यावर्त राष्ट्र का पुनर्निर्माण किया गया व प्रथम अनेक ऋषि मुनि ब्राह्मण रूप में राष्ट्र में सम्मिलित किए गए। वर्ण व्यवस्था के आधार पर वेदानुकूल मनु जी ने वर्ण निर्धारित करने की परिपाटी नियुक्त की और वर्ण निर्धारित करने का कार्य, गुरुकुल चला रहे गुरुजनों को सौंपा। अयोध्या नगरी का निर्माण महात्मा मनु जी ने वेदानुकूल किया - अष्ट चक्र नव द्वारा पुर अयोध्या। आठ चक्र व नौ द्वार शरीर रूपी मंदिर में भी होते हैं।
(आठ चक्र : मूलाधार चक्र, नाभि चक्र, ह्रदय चक्र, कंठ चक्र, नासिका चक्र, आज्ञा चक्र, सहस्रार चक्र, पुष्प चक्र )
(नव द्वार : दो आँख, दो कान , दो नासिकारंध्र, मुख, पाणी , पायु)
जिस प्रकार से शरीर में व्यवस्था होती है उसी प्रकार की व्यवस्था अयोध्या पूरी में भी की गयी।
ब्राह्मणो मुखमासीद बाहु राजन्यकृतः उरु तदस्य तद् वैश्य पद्भ्यां शूद्रोSजायत।
जिस प्रकार शरीर में मुख का स्थान होता है उसी प्रकार समाज में ब्राह्मणों के कर्म निर्धारित किये - यज्ञ करना, कराना, वेद पढ़ना, पढ़ाना, दान लेना व देना। जिस प्रकार शरीर में हाथ रक्षा के हेतु होते हैं, उसी प्रकार कार्य समाज में सौंपा - वेद पढ़ना, रक्षा करना, दान लेना दान देना, यज्ञ करना। जिस प्रकार उदर का स्थान होता है उसी प्रकार वैश्यों को समाज में कार्य सौंपा - व्यापार करना, दान देना, खेती करना, पशुपालन, वेद पढ़ना। जिस प्रकार पैरों का स्थान शरीर में होता है उसी प्रकार शूदों को कार्य सौंपा - इन सभी कार्यों में इन की सेवा भाव से आज्ञा पालन अर्थात सेवा करना।
आजकल तो सभी सेवक ही बन गए हैं और अपने अपने बॉसेस की सेवा मात्र कर रहे हैं। परन्तु अध्यापक ब्राह्मण कर्म अपनाये हैं, फौजी व पुलिस क्षत्रिय कर्म, व्यापारी वैश्य कर्म व सरकारी पियोन शूद्र कर्म। ये चार भाग आज भी हैं। इन से मुक्त समाज नहीं। परन्तु धार्मिक होना आवश्यक है।
आपका अपना
ब्रह्मचारी अनुभव शर्मा
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