गुरुवार, 10 अप्रैल 2014

राजा रावण

लंका की राज्य प्रणाली 
राजा रावण से पूर्व लंका के महाराजा कुबेर थे, महाराजा कुबेर से पूर्व महाराजा महिदन्त  थे, महिदन्त से पूर्व महाराजा शिव थे।  लंका की प्रणाली बहुत पूर्व से चली आ रही थी।  जब रावण राजा बने तब महाराजा रघु का जितना राज्य था,  उस पर रावण ने अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया, राजा दशरथ के पास सूक्ष्म सा अयोध्या का राष्ट्र रह गया था। 


वरुण से रावण

महाराजा महिदन्त की कन्या मन्दोदरी का संस्कार महाराजा रावण के साथ सम्पन्न हुआ।  रावण का बाल्यकाल का नाम ब्रह्मचारी वरुण था।  ब्राह्मण और वेदों का पंडित होने के कारण रावण को राजाओं ने सहायता प्रदान की और कुबेर को लंका से पृथक कर उन्हें लंका का स्वामी बना दिया।  जब वरुण का लंका के लिए चुनाव हुआ तो सब विद्वानों ने मिलकर इसका नाम रावण नियुक्त कर दिया।  'रावण' महादानी को कहा जाता है।  व्याकरण की दृष्टि से 'रावण' बुद्धिमान और विज्ञानवेत्ता को कहा जाता है।  यह कोई अपशब्द नहीं है।  व्याकरण की दृष्टि से, मानव समाज की दृष्टि से रावण महादानी को कहते हैं।

दशानन 

आधुनिक जगत में ऐसा कहा जाता है कि रावण के दस शीश थे, राम जब उन्हें नष्ट करते थे तो शीश द्वितीय उमड़ आते थे।  यह तो केवल उपहास है।  रावण को  क्यों कहते हैं? आनन नाम दिशाओं का है और यह पूर्व, पश्चिम, उत्तरायण और दक्षिणायन और इनकी चारों अस्थेती, पृथ्वी और अन्तरिक्ष  यह दस दिशाएं दिशाएं कहलाती हैं, इनके पूर्ण विज्ञान को राजा रावण जानते थे।  वे ब्राह्मण व महान प्रकांड बुद्धिमान थे। 

नाभि में अमृत कुण्ड 

ब्रह्मचारी वरुण सुशील था, वेदपाठी था, महान वैज्ञानिक था और महान बुद्धिमान था, उसकी आत्मा पवित्र थी, ह्रदय निर्मल हो गया था।  आयुर्वेद के सिद्धांत से इस वरुण ने जितना भी आयुर्वेद का नाड़ी विज्ञान था, वह जाना।  मनुष्य के शरीर में जो नाभि चक्र है इसमें लगभग दो करोड़ नाड़ियों का समूह है।  एक सुषुम्ना नाम की नाड़ी होती है जो मस्तिष्क से चलती है और उसका सम्बन्ध नाभि चक्र के अग्र भाग से होता है।  जो मनुष्य अच्छे विचार वाला होता है, परमपिता परमात्मा का चिंतन करने वाला होता है तो वह मनुष्य नाड़ी के विज्ञान से नाना विज्ञान को जानता है।  सुधित नाम की नाड़ी, उसको बोधित नाम की नाड़ी भी कहते हैं, जो ब्रह्म रंध्र से चलती है और उसका सम्बन्ध नाभि से रहता है । जब चन्द्रमा सम्पूर्ण कलाओं से पूर्णिमा के दिन परिपक्व होता है तो वह जो सुधित नाम की नाड़ी है उसका सम्बन्ध मस्तिष्क से होता हुआ सीधा चन्द्रमा से हो जाता है।  चन्द्रमा से जो कांति मिलती है उसे वह नाड़ी पान करती है। 
जो नाड़ी विज्ञान को जानने वाले होते हैं वह जानते हैं कि योग के द्वारा किस प्रकार चन्द्रमा से अमृत की प्राप्ति होती है, इस प्रकार वह अमृत पकता है और जो नाड़ियों के मध्य स्थान होता है, उस स्थान में यह अमृत एकत्रित होता रहता है।  तो इसमें क्या विशेषता है? इससे मानव का जीवन बलिष्ठ होता है और मृत्यु से भी विजयी बन जाता है।  उसे यह ज्ञात हो जाता है कि तेरी मृत्यु अधिक काल में आएगी, उसकी आयु अधिक हो जाती है, क्योंकि वह आनंद रूपी अमृत नाभिस्थल में होता है।  तो इसी को नाभि में अमृतकुंड कहते हैं। 

शिक्षा 

राजा रावण ने महर्षि भारद्वाज, महर्षि सोमभुक तथा ब्रह्मा जी से विज्ञान की शिक्षा प्राप्त की थी।  शिव भी रावण के गुरु थे। 

(पूज्यपाद गुरुदेव ब्रह्मचारी कृष्ण दत्त जी के प्रवचनों से)

आपका 
भवानन्द आर्य

5 टिप्‍पणियां:

  1. adbhut

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