महाभारत के युद्ध के समय जो लोग कौरवों के पक्ष में व उनके मानने वाले थे वे कुरुवंशी आर्य कहलाये। और जो पांडवों के पक्ष में थे वे तो थे ही आर्य। आर्य जाति आर्यावर्त की मूल जाति है। अर्जुन के प्रपौत्र परीक्षित के पुत्र जन्मेजय ने सर्वांग याग में एक ब्राह्मण के वध हो जाने से खिन्न होने पर आर्यावर्त छोड़ दिया व जन्मनी देश बसाया जो बाद में अपभ्रंश हो जर्मनी बन गया। अतः इस प्रकार भारत से कुछ आर्य जर्मनी में गए। और आज भी वहाँ के लोग अपने को आर्य कहते हैं।
जैनियों के काल में आज से लगभग 2400 वर्ष पूर्व हमारे मूल रामायण व महाभारत ग्रंथों में जैनी राजाओं के द्वारा परिवर्तन करा दिया गया था चार संस्कृत के विद्वानों - स्वाति, रेण केतु, रमाशंकर व चेतांग को धन का लोभ देकर। जिसमें रामायण व महाभारत के पात्रों को भ्रष्ट किया गया था। ताकि भ्रष्ट चरित्रों को देखकर भारतवासी जैनी व बौद्ध धर्म को स्वीकार कर लेवें। इस कार्य में वे सफल भी हो गए।
कुरुवंशी आर्यों की एक शाखा में ही मुहम्मद का जन्म हुआ। अपने से अधिक उम्र की एक धनवान विधवा से विवाह कर उसकी स्थिति व संपत्ति को प्राप्त कर लिया। गरीब हो कर के ऊँचे बन दुनिया पर राज्य करने का ख्वाब किया जो कि पूरा तो होना ही था। उन्होंने एक पुस्तक बना एक आस्वाति नाम के वृक्ष की खोकर में छिपा दी। कुछ समय के पश्चात एक सुबह उठकर उन्होंने अपने मित्र, सम्बन्धियों से कहा कि परमात्मा ने मुझे दर्शन दिए हैं और कहा है कि फ़लां वृक्ष को तुम समाप्त कराओ उसमें मैंने तुम्हे एक पुस्तकालय दिया है। उन्होंने ऐसा ही किया। जब वृक्ष नष्ट किया गया तो वहाँ वह पुस्तक निकली। उन सभी ने उसको परमात्मा का पुस्तक मान लिया और इस प्रकार मुहम्मद की विचारधारा समाज के समक्ष आ गयी। उन्होंने एक सेना का निर्माण किया और अपने क्षेत्र पर विजय करने के बाद भारत की और भी क़दम बढ़ाया। दूसरे राष्ट्रों पर रजोगुणी, तमोगुणी भावना से विजय करने का भाव उत्तम विचार नहीं। राजा भोज के महामंत्री काली ने मुहम्मद का भारत में ही वध कर दिया था।
मुसलमानों की एक सबसे बड़ी कमी यह है कि जो व्यक्ति अपने जीवन में एक बार भी मांस भक्षण कर ले वह कभी भी आध्यात्मिक विज्ञान में उपलब्धि हाँसिल नहीं कर सकता। आध्यात्मिक विज्ञान व भौतिक विज्ञान - दो प्रकार के विज्ञान संसार में पाए जाते हैं। भौतिक विज्ञान के द्वारा मशीन, कल, पुर्जे, बिल्डिंग व अन्य ऐश्वर्य के साधन प्राप्त होते हैं - जबकि आध्यात्मिक विज्ञान इन्द्रियों, मन, बुद्धि, चित्त, आत्मा व परमात्मा का विज्ञान होता है। यदि कोई मानव भौतिक विज्ञान में 50 वर्ष उपलब्धि प्राप्त करने में लगाए तो वहीँ उपलब्धि आध्यात्मिक विज्ञान से 2 वर्ष में ही हाँसिल कर सकता है। अतः मानव यदि तीव्र उपलब्धि, तीव्र विकास चाहता है तो भौतिक विज्ञान के साथ साथ आध्यात्मिक विज्ञान भी अति आवश्यक है।
अस्तु जब मुगलों ने आक्रान्ता की दृष्टि से भारत में पुनः प्रवेश किया तो वे सपत्नीक तो आये नहीं थे उन्होंने हमारी माताओं बहनों को ही बलपूर्ण तरीके से अपनाया। उस समय की अनीति व दुराचारपूर्ण आचरण की कल्पना हृदय को थर्रा देती है। परन्तु यह तो समय है आया व उन अनीतिज्ञों का यहाँ से सफाया भी हुआ। यदि उन यवनों के साथ अनीति न होती तो उनके साम्राज्य के समापन का कोई प्रश्न ही नहीं उठता था। वास्तव में मैं घृणापूर्ण दुराग्रह नहीं कर रहा अपितु सत्य से पुनः अवगत कराना मेरा धर्म है ऐसा विचार कर अपने देश की हिन्दू बहनों को यह सन्देश दे रहा हूँ कि यवनों को पति के रूप में स्वीकार करने से पूर्व इनकी अनीति, दुराचार, खानपान, स्वभाव, व अंधपुस्तक जिसको ये प्रमाण मानते हैं पर अंतर्दृष्टि अवश्य पहुँचावें। लव जिहाद का शिकार न बन जावें। वास्तव में विवाह जैसा पवित्र सम्बन्ध सिर्फ तभी होना चाहिए जब गुण , कर्म व स्वभाव लगभग एक से हों व आत्मिक ज्ञान, भौतिक ज्ञान व उपलब्धियाँ भी एक ही भाँति की हों। वैसे भी कन्या को माता पिता अपने से उच्च कुल में प्रवेश कराया करते हैं। तो कनिष्ठतम यवनों में अपनी कन्या को न जाने देवें।
उस समय मुग़ल फोजों ने क्या अनाचार व दुराचार किया था यह घृणा पूर्ण वचन तो मैं नहीं बताना चाहूंगा यहाँ पर उस समय मानवता पूर्ण रूपेण नष्ट हो गयी थी यह परिचय देना चाहूँगा। जिस पुस्तक के मानने वाले वे थे उसी पुस्तक को मानने वाले ये आधुनिक मुग़ल हैं। जो अनीति, अपवित्रता, दुराग्रह व धृष्टता और दूसरों के पदार्थों को बिल्ली की भांति झपटने में महारत प्राप्त हैं। उस पुस्तक में गैर मुस्लिम के साथ अनीति के प्रयोग की जो कथा है मैंने स्वयं पढ़ी है यदि किसी को संदेह हो मेरे वचन में तो स्वयं कुरआन का हिंदी तर्जुमा पढ़ लेवें। बात स्पष्ट हो जाएगी।
अतः भाइयों बहनों वेदों की और लौटो, सत्यार्थ प्रकाश, गीता, वेद व उपनिषदों का अध्ययन करो, गायत्री का जप करो, ॐ का जप करो, संध्या करो, योग करो व अपनी आत्मा को जानो। जब अपनी आत्मा को जान जाओगे, पूर्व व पर जन्म, स्वेर्ग, नर्क व ईश्वर के विधान में विश्वास हो जायेगा।
बल, यश, धनैश्वर्य, पत्नी, संतान आदि तो प्राप्त करते ही हो परन्तु इसके साथ साथ आध्यात्मिक विज्ञान में भी कुछ प्रवेश अवश्य कर, समाज का, अपने धर्म का, परिवार, ग्राम व क्षेत्र का उत्थान भी अवश्य करो।
इसे अंग्रेजी में पढ़ें
अस्तु जब मुगलों ने आक्रान्ता की दृष्टि से भारत में पुनः प्रवेश किया तो वे सपत्नीक तो आये नहीं थे उन्होंने हमारी माताओं बहनों को ही बलपूर्ण तरीके से अपनाया। उस समय की अनीति व दुराचारपूर्ण आचरण की कल्पना हृदय को थर्रा देती है। परन्तु यह तो समय है आया व उन अनीतिज्ञों का यहाँ से सफाया भी हुआ। यदि उन यवनों के साथ अनीति न होती तो उनके साम्राज्य के समापन का कोई प्रश्न ही नहीं उठता था। वास्तव में मैं घृणापूर्ण दुराग्रह नहीं कर रहा अपितु सत्य से पुनः अवगत कराना मेरा धर्म है ऐसा विचार कर अपने देश की हिन्दू बहनों को यह सन्देश दे रहा हूँ कि यवनों को पति के रूप में स्वीकार करने से पूर्व इनकी अनीति, दुराचार, खानपान, स्वभाव, व अंधपुस्तक जिसको ये प्रमाण मानते हैं पर अंतर्दृष्टि अवश्य पहुँचावें। लव जिहाद का शिकार न बन जावें। वास्तव में विवाह जैसा पवित्र सम्बन्ध सिर्फ तभी होना चाहिए जब गुण , कर्म व स्वभाव लगभग एक से हों व आत्मिक ज्ञान, भौतिक ज्ञान व उपलब्धियाँ भी एक ही भाँति की हों। वैसे भी कन्या को माता पिता अपने से उच्च कुल में प्रवेश कराया करते हैं। तो कनिष्ठतम यवनों में अपनी कन्या को न जाने देवें।
उस समय मुग़ल फोजों ने क्या अनाचार व दुराचार किया था यह घृणा पूर्ण वचन तो मैं नहीं बताना चाहूंगा यहाँ पर उस समय मानवता पूर्ण रूपेण नष्ट हो गयी थी यह परिचय देना चाहूँगा। जिस पुस्तक के मानने वाले वे थे उसी पुस्तक को मानने वाले ये आधुनिक मुग़ल हैं। जो अनीति, अपवित्रता, दुराग्रह व धृष्टता और दूसरों के पदार्थों को बिल्ली की भांति झपटने में महारत प्राप्त हैं। उस पुस्तक में गैर मुस्लिम के साथ अनीति के प्रयोग की जो कथा है मैंने स्वयं पढ़ी है यदि किसी को संदेह हो मेरे वचन में तो स्वयं कुरआन का हिंदी तर्जुमा पढ़ लेवें। बात स्पष्ट हो जाएगी।
अतः भाइयों बहनों वेदों की और लौटो, सत्यार्थ प्रकाश, गीता, वेद व उपनिषदों का अध्ययन करो, गायत्री का जप करो, ॐ का जप करो, संध्या करो, योग करो व अपनी आत्मा को जानो। जब अपनी आत्मा को जान जाओगे, पूर्व व पर जन्म, स्वेर्ग, नर्क व ईश्वर के विधान में विश्वास हो जायेगा।
बल, यश, धनैश्वर्य, पत्नी, संतान आदि तो प्राप्त करते ही हो परन्तु इसके साथ साथ आध्यात्मिक विज्ञान में भी कुछ प्रवेश अवश्य कर, समाज का, अपने धर्म का, परिवार, ग्राम व क्षेत्र का उत्थान भी अवश्य करो।
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जय गुरुदेव
आपका
ब्रह्मचारी अनुभव शर्मा
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