ओ३म्
दान की महिमा व यज्ञ को ठुकराने व याज्ञिक को दुत्कारने का फल
चलती चाकी देख के दिया कबीरा रोय
दुई पाटन के बीच में साबुत बचा न कोय।
चलती चाकी देख के कबिरा दिया मुस्काय
जो कीली लिपटा रहा बाल न बांका जाय।
भाइयों बहनों! इसी प्रकार यज्ञ ब्रह्मांड की नाभि की नाभि है। जिसने इसका सहारा ले लिया उसका बाल भी बांका नहीं हो सकता।
इसका पुजारी कोई पराजित नहीं होता।
इसके पुजारी को कहीं भी भय नहीं होता।
आदि ऋषियों ने कहा है कि प्रेम से दो, श्रद्धा से भी दो, कर्तव्य के लिए भी दो, भय से भी दो परन्तु दान अवश्य ही करना चाहिए। यह दान मानव का बहुत बड़ा उपकार करता है। वेद में भी कहा है-
मा गृध: कस्यस्विद्धनम्।यजुर्वेद।४०।१।
दान व यज्ञ की महिमा अपरम्पार है।
आपका
ब्रह्मचारी अनुभव शर्मा
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