ओ३म्
अथ सुविचारम्
बिना कामना के तो मानव आँखों को भी नहीं झपक सकता। अर्थात् कोई भी पूर्ण निष्काम नहीं हो सकता है। अब भाइयों बहनों जब कामनाएँ हैं तो उनकी पूर्ति का साधन भी किया जाया करता है।
जैसे हमारी कामना है कि हमारा बेटा उच्च शिक्षा पाए व हमारी बेटियों की उच्च घराने में शादियाँ हो अत: उनको उच्च शिक्षा दिलाई जाती है। अपने घर के सारे कार्य अच्छी प्रकार सम्पन्न हो सकें व अच्छी नौकरी व पगार हो इसके लिये हम भी बचपन से युवावस्था तक पढ़ते हैं। अर्थात् कामनाओं की पूर्ति में बच्चों के विवाह तक का समय हमने नष्ट कर डाला। अब रही अधेड़ावस्था व वृद्धावस्था तरह तरह की कामनाएँ लगी ही रहती हैं। पुरे जीवन कामना ही कामनाओं की पूर्ति में लगे रहे।
यदि कोई कहे कि भाई वेदों में कामनाएँ पूर्ण करने के लिए विधि या विधियाँ हैं तो एक भ्राता जी मुझे गालियाँ देने लगे कि अरे दुष्ट! तू कामना पूर्ति के चक्कर में लगा है। उन भ्राता जी से कोई पूछे कि तुम क्या करते हो। क्या ये सभी उपरोक्त नहीं करते। तो तेरी भी चुप और मेरी भी चुप।
तो भाइयों बहनों कामनाएँ तो पूर्ण करते ही हो कुछ कर्म परम पिता के लिए व अन्य प्राणियों के लिए भी करो। निष्काम कर्म भी करो । भ्राता जी का धन्यवाद जो निष्काम कर्म की और प्रेरित कर रहे थे। परन्तु शब्दों में न कह पाए ।
स्वप्रेरणा से
ब्रह्मचारी अनुभव शर्मा
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