मंगलवार, 12 अगस्त 2014

अध्यात्म द्वारा वार्तालाप

जैसा कि मैं पहले भी कह चुका हूँ कि अध्यात्म पांच कर्मेन्द्रियों, पांच ज्ञानेन्द्रियों, मन, बुद्धि , चित्त, अहंकार, आत्मा और परमात्मा का विज्ञान है।

यदि हम भौतिक विज्ञान में ५० वर्ष अभ्यास करें तो जो हम उपलब्धिप्राप्त करते हैं वह उपलब्धि अध्यात्म में सिर्फ २ वर्ष में ही हो जाती है।  इसलिए अध्यात्म विज्ञान भौतिक विज्ञान से श्रेष्ठ व बड़ा है। 

एक तथ्य मेरे मन में है जो मैं बिलकुल अभी आपके सामने खोल रहा हूँ। 

माना अध्यात्म के द्वारा हम अपने प्रिय से वार्तालाप करना चाहते हैं तो हमें वायुदेव से इस प्रकार प्रार्थना करनी चाहिए , " ओ वायुदेव! मेरी मेरे प्रिया से वार्तालाप करने में सहायता करो।  जो मैं उसको कहूँ   वह बात वहां तक पहुंचा दो और उसका उत्तर मुझे सुना दो  या मैं सुन पाऊँ।"  वार्तालाप पूर्ण कराने के लिए हमें नम्रता पूर्वक उससे प्रार्थना करनी चाहिए और हमें उसे नमस्कार करना चाहिए। 

तब हम स्पष्ट रूप से देखते हैं कि हमारा अबाधित व स्पष्ट वार्तालाप हो जाता है।  यह वार्तालाप मध्यमा वाणी में होता है। 

समझे? यह अध्यात्म का लाभ है।  हमें योग, उपनिषद, वेद व ऋषि प्रणीत पुस्तकों की सहायता से अध्यात्म में प्रवेश करना चाहिए। 

नोट : चार प्रकार की वाणी होती हैं - परा, पश्यन्ति, मध्यमा और बैखरी। बैखरी वाणी में ही सामान्यतया हम आपस में बातचीत करते हैं।

अगली पोस्ट में शीघ्र ही मिलते हैं।


इस पोस्ट को अंग्रेजी में पढ़ें



आपका 
भवानन्द आर्य 'अनुभव'

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