रविवार, 29 मई 2016

सुविचार भाग २

हिन्दू धर्म :


सनातन अर्थात जो पहले से ही है और वैदिक अर्थात वेदो के अनुकूल। इसलिए यह वह धर्म है जो कि ऋषि मुनियों के द्वारा माननीय है। वैदिक और सनातन दोनों शब्द एक ही धर्म को इंगित करते हैं। स्वामी दयानन्द ने उसी पुराने धर्म को प्रतिपादित किया है। धर्म मानव की इंद्रियों में सन्निहित रहता है। अतः धर्म एक ही होता है अनेक नहीं। वाणी से सत्य बोलना धर्म व असत्य बोलना अधर्म है। आँखों से सुदृष्टि पात करना धर्म व कुदृष्टि पात करना अधर्म है। यही धर्म की मूल परिभाषा है । हिन्दू धर्म सनातन वैदिक है अतः सर्वश्रेष्ठ है। मूर्ति पूजा सही नहीं क्यूंकि यजुर्वेद में कहा है 'न तस्य प्रतिमाSस्ति' तो फिर ये मूर्तियां परमात्मा की नहीं। हाँ परमात्मा के अनन्त गुणों मे से कुछ का ज्ञान तो कराती हैं। धर्म तो परमात्मा ने सृष्टि के प्रारम्भ में ही मानव जाति के कल्याण के लिए वेद द्वारा उपदेश कर दिया था 1,96,08,53,116 वर्ष पहले। यजुर्वेद के 40 वें अध्याय का ये मन्त्र - 'अन्धन्तमः प्रविशन्ति येSसम्भूतिमुपासते .............' कहता है कि नाशवान अर्थात जगत के पदार्थ व अविनाशी अर्थात प्रकृति, परमात्मा व आत्मा इनको उचित रूप से मान इनकी पूजा अर्थात संग, सदुपयोग व प्रार्थना आदि करने से ऐशवर्य व मुक्ति दोनों प्राप्त कर सकते हैं अन्यथा नरक में गति है। मूर्तिपूजक इस मन्त्र का अर्थ सही प्रकार से न समझ सके। 






आपका अपना


ब्रह्मचारी अनुभव शर्मा 'भवानन्द'

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