गुरुवार, 26 मई 2016

सुविचार

*सुबह उठते ही एक गिलास पानी (जाड़ों में गर्म व गर्मियों में ताज़ा ) जल्दी जल्दी पियें।  यह अमृत तुल्य है तथा इसे उषा पान कहते हैं। भोजन से पूर्व का जल अमृत, बीच-बीच में थोड़ा-थोड़ा जल जल व भोजन के तुरन्त बाद जल विष के तुल्य है।  भोजन के कम से कम आधा घंटा बाद ही जल पिएं-   (रामदेव बाबा , चाणक्य नीति एवं ऋग्वेद )


*दान के समान अन्य कोई सुहृद नहीं है और पृथ्वी पर लोभ के समान कोई शत्रु नहीं है।  शील के समान कोई आभूषण नहीं है और संतोष के समान कोई धन नहीं है-  (विदुर नीति )

 
*तप कहते हैं अपनी इंद्रियों को तपाना और जो हमारे ह्रदय में दूषित संस्कारों का जन्म हो गया है उन दूषित संस्कारों को नष्ट करना तप और स्वाध्याय के द्वारा व इंद्रियों को जय करने के द्वारा हम इंद्रियों के दूषित संस्कारों को नष्ट कर दें।  और ओर सुन्दर संस्कारों को जन्म देने का नाम तप कहा जाता है -  (भगवान राम )

जब तक तुम्हारी इंद्रियों में अज्ञान है तुम्हारे मन मस्तिष्क मे अज्ञान है तब तक तुम मृत्यु से पार नहीं हो सकते और बिना मृत्यु से पार हुवे तुम्हारा जीवन सार्थक नहीं बनेगा।
इंद्रियों को नियमित करना ही तप है तथा बिना तप के अज्ञान नष्ट नहीं हो सकता - (ब्रह्मचारी कृष्ण दत्त जी, पूर्व श्रृंगी ऋषि)

जो व्यक्ति विद्वान, अध्यापक, ब्राह्मणों व ऋषि मुनियों के धन को हरता है या उनके क्रोध का पात्र बनता है उसका विनाश काल निकट है यह निश्चित जानो।




इस पोस्ट को अंग्रेजी में पढ़ें
आपका अपना 
ब्रह्मचारी अनुभव शर्मा 

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