ॐ
महाशिवरात्रि का त्यौहार अभी अभी बीता है। मैं आपके सामने आर्यों के तथ्य जो भगवान के बारे में हैं, प्रस्तुत कर रहा हूँ। परमात्मा को शिव कहते हैं क्यूँकि वह सत्य व दृढ संकल्प वाले और कल्याणकारी हैं।
यह मन्त्र वेद से लिया गया है जिसका अर्थ इस प्रकार है -
नमस्कार कल्याणस्वरूप नमस्कार हे प्रभु अनूप नमस्कार सब सुखों के दाता नमस्कार हे बुद्धि विधाता नमस्कार बल के भंडारा नमस्कार है बारम्बारा।
नमस्कार कल्याणस्वरूप नमस्कार हे प्रभु अनूप नमस्कार सब सुखों के दाता नमस्कार हे बुद्धि विधाता नमस्कार बल के भंडारा नमस्कार है बारम्बारा।
वास्तव में गुरुदेव ब्रह्मचारी कृष्ण दत्त जी महाराज के अनुसार मैं सोचता हूँ कि शिव लिंग की मंदिरों में स्थापना कोई बुरी प्रथा नहीं है। मैंने एक कहानी पहले भी इसी ब्लॉग में बतायी है और यह प्रथा को सही सिद्ध करती है। मैं इस बात को अच्छी प्रकार सिद्ध कर सकता हूँ मैं उस कहानी की व्याख्या अच्छी प्रकार कर सकता हूँ। उस कहानी के विषय में सुनें-
जब संसार बना नहीं था और यह प्रकृति के सूक्ष्म कणों के रूप में था और जहाँ केवल अन्धकार ही अन्धकार था वैज्ञानिक लोग उस अवस्था को ब्लैक होल के नाम से भी व्याख्याइत करते हैं। प्रकृति के सूक्ष्म रूप को पार्वती कहते हैं और परमात्मा यहाँ शिव रूप में जाना जाता है। तब हम और अन्य दिव्य आत्माएं (ब्रह्म पद के निकट की आत्माएं) परमात्मा (परब्रह्म) से निवेदन करती हैं कि हे प्रभु पूर्व की भाँति जगत की उत्पत्ति हम जीवात्माओं के कल्याण के लिए करो तो परमात्मा तप करते हैं और परमात्मा (शिव) की ओर से महतत्व (जिसे आधुनिक वैज्ञानिक बुद्धि के नाम से भी जानते हैं) चलता है यह ही शिव लिंग है। प्रकृति में आकर यह प्रकृति के स्वाभाव को फिर से प्रकट कर देता है और सृष्टि की उत्पत्ति प्रारम्भ हो जाती है। और दृश्यमान जगत उत्पन्न हो जाता है। जबकि उससे पहले प्रलय काल में हम जीवात्मा परमात्मा के गोद में सोते रहते हैं पूरी प्रलय की अवधि में।
जब संसार बना नहीं था और यह प्रकृति के सूक्ष्म कणों के रूप में था और जहाँ केवल अन्धकार ही अन्धकार था वैज्ञानिक लोग उस अवस्था को ब्लैक होल के नाम से भी व्याख्याइत करते हैं। प्रकृति के सूक्ष्म रूप को पार्वती कहते हैं और परमात्मा यहाँ शिव रूप में जाना जाता है। तब हम और अन्य दिव्य आत्माएं (ब्रह्म पद के निकट की आत्माएं) परमात्मा (परब्रह्म) से निवेदन करती हैं कि हे प्रभु पूर्व की भाँति जगत की उत्पत्ति हम जीवात्माओं के कल्याण के लिए करो तो परमात्मा तप करते हैं और परमात्मा (शिव) की ओर से महतत्व (जिसे आधुनिक वैज्ञानिक बुद्धि के नाम से भी जानते हैं) चलता है यह ही शिव लिंग है। प्रकृति में आकर यह प्रकृति के स्वाभाव को फिर से प्रकट कर देता है और सृष्टि की उत्पत्ति प्रारम्भ हो जाती है। और दृश्यमान जगत उत्पन्न हो जाता है। जबकि उससे पहले प्रलय काल में हम जीवात्मा परमात्मा के गोद में सोते रहते हैं पूरी प्रलय की अवधि में।
हालाँकि भगवान शिव त्रेता काल के एक महाराजा का नाम भी था जिनके दो पुत्र गणेश व कार्तिकेय थे उनकी पत्नी का नाम पार्वती था। परन्तु जब शिवलिंग का चर्चा आता है तो यह ऊपर लिखित परमात्मा, शिव को ही संदर्भित करना चाहिए। इस प्रकार हमें सोचना चाहिए की भगवान् शिव नाम से दो लोगों को लिया जा सकता है एक तो महाराजा भगवान् शिव और एक परमपिता परमात्मा कल्याणकारी वास्तविक शिव।
महाशिवरात्रि की सभी भाई बहनों को बधाइयाँ। यह महाशिवरात्रि परमात्मा शिव के लिए ही मनाई जाती है न कि महाराजा शिव के लिए। महाशिवरात्रि के दिन ही सूर्य निर्माण परमात्मा ने किया था। इस सृष्टि को बने १,९७,२९,४९,१२० वर्ष हो गए हैं और यह श्वेतवाराह कल्प (१०००X ४३,२०००० वर्ष का समय कल्प कहलाता है ) चल रहा है। परमात्मा एक बार में एक कल्प की अवधि के लिए सृष्टि की रचना करते हैं।
आपका अपना
ब्रह्मचारी अनुभव शर्मा